दाजी जीवन के कोमल पक्ष और उसके लाभों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। प्रकृति के उदाहरण से वे बता रहे हैं कि मृदुलता जीवन के, स्वयं के और दूसरों के साथ संबंधों के निर्वाह के लिए परिपक्व दृष्टिकोण क्यों है।
प्रिय मित्रों,
तेज़ी से बदलती हुई और जटिल दुनिया में इन दिनों इस बात की ज़रूरत अधिक से अधिक महसूस की जा रही है कि हमें और अधिक मानवीय, मृदुल, प्रेमपूर्ण और चीज़ों को स्वीकार करने के काबिल बनना चाहिए।
हम प्रकृति से इस बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं। उदाहरण के लिए महोगनी, ओक और बबूल जैसे पेड़ जो बहुत ऊँचे, दृढ़ और मज़बूत होते हैं, आसानी से काटे नहीं जा सकते। फिर भी वे हमें भरपूर और मधुर फल नहीं देते। इनकी तुलना अगर चीकू और आम के पेड़ों से करें तो इनकी शाखाएँ हवा के झोंको से सरलता से मुड़ जाती हैं। यद्यपि इनकी लकड़ी बहुत मुलायम होती है, फिर भी ये हमें स्वादिष्ट और पोषक फल देते हैं। जीवन में कोमलता का संबंध देने और माधुर्य से है।
मानवीय स्तर पर हम देख सकते हैं कि कैसे महिलाएँ सामान्य रूप से अधिक प्रेमपूर्ण और मृदुल होती हैं। यह उनका जन्मजात स्वभाव है और प्रकृति ने उन्हें यह प्रचुरता से प्रदान किया है। यह प्रेम ही है जो उन्हें मृदुल बनाता है और उनकी यह सहज भावना ही मानवता को जीवित रखती है। उनके सामने कैसी भी परिस्थिति हो, वे उसका सामना प्रेम और स्वीकार्यता से करती हैं।
प्रेम के बिना हम सचमुच मानवीय बनने के लिए संघर्ष करते हैं। हमारे हृदय में प्रेम बहुत सीमित होने के कारण हम इसे कम ही दे पाते हैं और प्रेम के सार्वभौमिक विस्तार की वृहत्तर योजना में सम्मिलित नहीं हो पाते हैं। इस तरह से प्रेम की नदी का प्रवाह हमारे सीमित दायरे में ही रुक जाता है।
अगर हम प्रेम की इस नदी को सागर तक पहुँचने दें अर्थात इसे सार्वभौमिक बनने दें तो क्या होगा? ध्यान इसे संभव बना सकता है। हृदय-आधारित ध्यान मृदुलता, कोमलता और प्रेम को पोषित करता है। इन तीन शब्दों को पढ़ने या कहने मात्र से हमारा हृदय मानो पिघल जाता है। जब किसी ध्यानमयी हृदय में प्रेम सर्वोच्च स्थान ग्रहण कर लेता है तब यह जिसे भी स्पर्श करता है वह तत्काल परिवर्तित हो जाता है। अंदर से ध्यानमयी रहने और बाहर से अपने दैनिक कार्यों व गतिविधियों पर केंद्रित रहने से हमारी आंतरिक प्रेममयी अवस्था उस कार्य के स्वरूप को ही बदल देती है जो हम कर रहे होते हैं।
जब हम ध्यानमयी रहते हैं तब हमारे तथाकथित भावनात्मक विष भी रूपांतरित हो जाते हैं। ध्यान से हममें बेहतर समझ पैदा होती है जो विष को भी अमृत में बदल सकती है। और हृदय एक ऐसे प्रिज़्म की तरह बन जाता है जिससे जो कुछ गुज़रता है, अमृतमय हो जाता है।
ध्यान इसे संभव बना सकता है। हृदय-आधारित ध्यान मृदुलता, कोमलता और प्रेम को पोषित करता है।
कभी-कभी हम अपनी प्रतिक्रिया में बदले का जवाब बदला लेने की भावना से या क्रोध का जवाब क्रोध से देने की ओर उन्मुख हो सकते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि क्रोध से पैदा होने वाली ऊर्जा अनोखी होती है और क्रोध को नष्ट भी नहीं किया जा सकता है। लेकिन अगर हम कुछ क्षण के लिए रुक जाएँ, विचार करें और अपनी समझ का विवेकपूर्ण उपयोग करें तो निश्चित रूप से यह ऊर्जा करुणा में बदली जा सकती है। गहरी साँस लेकर दस तक गिनना एक पुराना कथन है जो हमेशा कारगर होता है। जब हम प्रेम की अवस्था में होते हैं तब क्रोध के प्रति हमारी प्रतिक्रिया स्वाभाविक रूप से क्रोध के बजाय करुणा के रंग में रंग जाती है। यही क्रम-विकास है।
करुणा और प्रेम
हम अपने आप को बदलने की कोशिश कर सकते हैं ताकि हम व्यंग्य और अपमान के बजाय प्रेम और मुस्कान के साथ या थोड़ा मज़ाक करके सहज रूप से प्रतिक्रिया दे सकें। यह छोटा-सा अभ्यास बहस की गरमागरमी में तीव्र भावनाओं की जगह करुणा और प्रेम लाने में मदद कर सकता है।
- एक दृश्य की कल्पना करें या किसी ऐसी पुरानी बात को याद करें जब आपने किसी के साथ बहस करते हुए क्रोध में प्रतिक्रिया दी हो अथवा आपके कठोर शब्दों ने किसी को आहत किया हो। उस समय इसका परिणाम क्या हुआ था?
- अब उसी दृश्य में खुद की पुन: कल्पना करें और यह विचार लें कि वही व्यक्ति फिर से आपके साथ है।
- बहस के दौरान आपको यह एहसास होता है कि उसे जारी रखने का कोई फ़ायदा नहीं है और उससे बेवजह दिन भर आपके मन में उथल-पुथल मची रहेगी।
- ऐसे समय में आप “क्षमा करें” कहकर बहस को बीच में ही खत्म कर दें और पीछे हट जाएँ। फिर थोड़ी देर रुककर गहरी साँस लें, खुद को अपने भीतर की प्रेम और कोमलता की अवस्था से जोड़ लें। विकल्प चुनने में हमेशा समझदारी से काम लें।
- भविष्य में इसी तरह की परिस्थितियों में अधिक प्रेमपूर्ण प्रतिक्रिया करना सुनिश्चित करने के लिए आप इसे अपनी डायरी में लिख सकते हैं। इसे और स्वाभाविक बनाने के लिए आप इसका पूर्वाभ्यास भी कर सकते हैं।
शारीरिक प्रभावों को मिटाएँ
क्रोध और भय आपके शरीर को भी प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए शारीरिक तनाव को दूर करने से सूक्ष्म शरीर, भावनाओं और विचारों के प्रवाह में भी राहत मिलती है। अपने अंदर कोमलता और प्रेम को प्रवाहित होने देने के लिए इस सरल रिलेक्सेशन विधि का अभ्यास करें।
- आराम से बैठ जाएँ और कोमलता से अपनी आँखें बंद कर लें।
- अपने हाथों और उँगलियों को ढीला छोड़ दें और महसूस करें कि उनका तनाव कम हो रहा है।
- अपने कंधों को ढीला छोड़ दें।
- अब अपना ध्यान अपने चेहरे पर ले आएँ, अपने जबड़े को ढीला छोड़ दें और अपने मुँह को शिथिल करें
- महसूस करें कि आपके चेहरे की सभी माँसपेशियाँ नरम पड़ रही हैं।
- अपनी साँसों की गति को स्वाभाविक रूप से धीमा होने दें।
- हर साँस के साथ आपका मन तनावमुक्त हो रहा है और चीज़ों पर अपनी पकड़ छोड़ रहा है।
- जब आप तैयार हों तब धीरे से अपनी आँखें खोलें।
मुझे अपने एक सहयोगी द्वारा एक बार दूसरे सहयोगी को दी हुई सलाह याद आती है जो किसी नकारात्मक अफ़वाह के कारण परेशान था। कोमलता और मृदुलता से उसने कहा था, “हमें एक-दूसरे के साथ मृदुलता और सहृदयतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए।” यह लागू करने योग्य अत्यंत सरल, गहन और सार्वभौमिक उपाय है।
आप सभी को शुभकामनाएँ,
दाजी