संपादक की पुस्तक और फ़िल्म समीक्षा
एलिज़ाबेथ डेनली ने ‘एंफ़ीबियस सोल’ नामक पुस्तक की समीक्षा की और बताया कि कैसे क्रेग फ़ॉस्टर के प्राकृतिक जगत, विशेष रूप से दक्षिण अफ़्रीका के किनारों पर मौजूद दक्षिणी महासागर, के अनुभव ने उन्हें अपने जीवन के उन पहलुओं को समझने में मदद की जिन्हें अब उनकी आत्मा की यात्रा में एकीकृत किया जा सकता है।
हाल ही में मैंने क्रेग फ़ॉस्टर की पुस्तक ‘एंफ़ीबियस सोल’ पढ़ी। वे ऑस्कर विजयी वृत्तचित्र ‘माई ऑक्टोपस टीचर’ के निर्माता हैं। मुझे वह फ़िल्म बहुत पसंद आई क्योंकि मैं ऑस्ट्रेलिया में समुद्र के किनारे पली-बढ़ी हूँ और बीस से तीस की आयु के बीच समुद्री पारिस्थितिकीविद के रूप में काम कर चुकी हूँ। फ़ॉस्टर की कहानी सीधे समुद्री जीवों और प्राकृतिक जगत के सौंदर्य के साथ मेरे अपने अनुभवों से जुड़ी है। फ़ॉस्टर की तरह मैंने भी भूमि और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र दोनों के बारे में जानने की कोशिश की थी। मैं भी प्रकृति के निरंकुश प्रवाह को पसंद करती थी और शहरी जीवन व शहरी क्षेत्र की बड़ी-बड़ी इमारतों के बीच फँसा हुआ महसूस करती थी।
मैंने विश्वविद्यालय में बहुत ही व्यावहारिक प्रयोगात्मक तरीकों का उपयोग करते हुए प्राणीशास्त्र, वनस्पति विज्ञान और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन किया। मैं ज़मीन से जुड़कर काम करती और उस वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा पेड़-पौधों व पशुओं के विस्तार और प्रचुरता के स्वरूप पता लगाती थी। इससे मुझे प्रचुर मात्रा में ऊर्जा मिलती थी। लेकिन एक दिन ऐसा आया जब यह पर्याप्त नहीं रहा। मैं विश्व के बारे में एक विशेष नज़रिए पर अटकी हुई महसूस कर रही थी और इससे मुक्त होना चाहती थी। वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्राणियों के साथ यंत्रवत तरीके से पेश आता था और मुझे उसके साथ-साथ एक ऐसे तरीके से भी काम करना था जो अधिक सूक्ष्म और सुंदर हो ताकि प्राकृतिक संसार को समझने की मेरी गहरी इच्छा पूरी हो पाए।
जब मैंने अपने पारिस्थितिकी के व्यवसाय को त्याग दिया तब मुझे इस बात का एहसास नहीं था कि मेरे जीवन का वह चरण कितना महत्वपूर्ण साबित होगा। क्रेग फ़ॉस्टर की फ़िल्म और किताब ने मुझे ऐसा करने के लिए प्रेरित किया और मुझे इसे सम्मान देने और सभी चीज़ों को आपस में जोड़ने में मदद की।
यही गैर-काल्पनिक पुस्तकों और वृत्तचित्रों का सौंदर्य है। किसी अन्य व्यक्ति के अनुभव और अभिव्यक्ति आपको प्रभावित भी कर सकते हैं और प्रेरित भी, सिखा भी सकते हैं और सुकून भी दे सकते हैं। दुनिया का अनुभव करने का फ़ॉस्टर का तरीका मेरे अपने तरीके के साथ इतनी गहराई से जुड़ा था कि इसकी वजह से मैं अपने युवा स्व को समझ पाई और आगे बढ़ पाई।
केवल बाहरी ज्ञान पर केंद्रित रहने के बजाय मुझे अंतर्दृष्टि, प्रत्यक्ष बोध, अंतर्ज्ञान, समन्वय एवं विलय द्वारा सीखने के बारे में जानकारी मिली।
लेकिन यही सब कुछ नहीं है। पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन करने का मेरा समय केवल वैज्ञानिक अध्ययनों के लिए क्षेत्र में एकत्र की गई जानकारी तक सीमित नहीं था। अधिकांश दिन मैं सहयोगियों को समुद्र के किनारों पर, केल्प वनों में, वर्षावन में, प्रवालभित्तियों पर और व्हेल व पक्षियों के प्रवासन पर नज़र रखने में मदद करने में बिताती थी। कभी-कभी मैं उन जानवरों और वनस्पतियों को देखती जिनका हम अध्ययन कर रहे होते थे और पूछती, “जब हम आपका अध्ययन कर रहे हैं तब आप हमारे बारे में क्या सोचते हैं?” कुछ हद तक वास्तव में एक जुड़ाव होता था और तब मुझे पता चला कि कुछ है जो सांख्यिकीय आँकड़ों और रूपात्मक विवरणों से अधिक है। बचपन में मेरे पसंदीदा वृक्ष मेरे प्यारे दोस्त थे और डॉल्फ़िन के साथ मैं खेला करती थी। मैं उस संबंध को खोना नहीं चाहती थी।
पाँच साल बाद मुझे इस आध्यात्मिक अभ्यास का पता चला जिसे आज हार्टफुलनेस के नाम से जाना जाता है। और तुरंत ही अंदर खुशी का एहसास होने लगा। इस अभ्यास में खोज की एक विधि थी जिससे मुझे अपने जीवन की पहेली के वो टुकड़े मिल सकते थे जो पहले नहीं मिल रहे थे। केवल बाहरी ज्ञान पर केंद्रित रहने के बजाय मुझे अंतर्दृष्टि, प्रत्यक्ष बोध, अंतर्ज्ञान, समन्वय एवं विलय द्वारा सीखने के बारे में जानकारी मिली। यह सच में ज्ञान प्राप्त करने का बहुत महत्वपूर्ण तरीका था। मैंने वर्षों में पहली बार वास्तव में जीवंत महसूस किया और मैं आशान्वित हो गई कि इससे मुझे वे सब जवाब मिल जाएँगे जिनकी मुझे उस समय बहुत आवश्यकता थी। यह ऐसा था जैसे बिना मेरी सचेत भागीदारी के, सार्थकता की गहरी खोज मेरे जीवन को निर्देशित कर रही थी। मैं शुरू से यह भी जानती थी कि आध्यात्मिकता मुझे इस दृश्यमान दुनिया से परे क्षेत्रों में ले जाएगी। और वह कहानी इस कहानी से अधिक महत्वपूर्ण है। मैं इसे किसी और दिन सुनाऊँगी।
पीछे मुड़कर देखती हूँ तो मुझे एहसास होता है कि सभी ज़मीनी काम, वैज्ञानिक पद्धति का कठोर प्रशिक्षण व अनुशासन, अवलोकन कौशल को परिष्कृत करना, जिज्ञासु मन को प्रखर करना और मेरे शिक्षकों का मार्गदर्शन वही सब कुछ था जिसकी मुझे आध्यात्मिक यात्रा शुरू करने के लिए ज़रूरत थी। मैं बहुत अच्छी तरह से प्रशिक्षित हुई थी। इतना ही नहीं, इतने वर्षों तक प्रकृति में रहने के कारण मुझे प्राकृतिक संसार की सादगी और परिवर्तनशील प्रवाह अच्छा लगता था। मैं अपने सामने के बगीचे में देवदार के पेड़ को उतना ही प्यार कर सकती थी जितना किसी व्यक्ति या मेंढक या लाल चींटियों के झुंड को। सूर्य, चंद्रमा, तारे और ग्रह, जीवित प्राणी की भांति, प्रेम और आदर के योग्य थे और शहर से दूर प्राकृतिक संसार में रहते हुए हमारे जीवन अक्सर इन सभी पर निर्भर करते हैं। पानी जीवित प्राणी की तरह था, हवा और सुगंध भी प्राणी की तरह ही थे और जीवन शक्ति में भी, जो वसंत ऋतु में धरती से निकलती थी, प्राण महसूस होते थे। वे सभी संवाद करते व सुनते थे। वे सभी प्रेम प्रसारित करते थे और उसे पाकर आनंदित होते थे।
प्रकृति में समय बिताने से हम समर्पण की स्थिति में रहते हैं क्योंकि हम पारिस्थितिकी तंत्र के ही एक अंग हैं, हम अलग-अलग प्राणी नहीं हैं। |
जब मैंने ‘एंफ़ीबियस सोल’ पढ़ी, तब मुझे और ज्ञान प्राप्त हुआ, क्योंकि फ़ॉस्टर का लेखन आध्यात्मिकता के साथ बहुत मेल खाता है। एक जगह पर वे कहते हैं, “यह मानव-नियंत्रित दुनिया हमारी प्राथमिकताओं को विकृत कर सकती है जिससे हम अपने अहंकार को संतुष्ट करने को बहुत अधिक महत्व देने लगते हैं। प्राकृतिक दुनिया में कोई भी प्राणी किसी अन्य प्राणी से अधिक महत्वपूर्ण नहीं होता है। जब एक ‘सैन’ शिकारी बड़े पशु का शिकार करके अपने गाँव वालों को खिलाने के लिए घर लाता है तब लोग उसे चिढ़ाते हैं – ‘तुमने इतनी परेशानी क्यों उठाई? तुम हमारे लिए हड्डियों का यह ढाँचा क्यों लाए?’ वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि अहंकार एक खतरनाक चीज़ है। हज़ारों सालों से वे यह देखते आ रहे हैं कि कैसे कुछ लोगों को दूसरों से ऊपर रखने से ईर्ष्या, जलन व लालच पैदा होता है। और जब हमारी नियंत्रित दुनिया में हमारे अहंकार और इच्छाएँ बहुत बड़ी हो जाती हैं तब हम एक-दूसरे से लड़ने लगते हैं और हम अपने ही घर, अपने पालनकर्ता, अपने सुरक्षित स्थल को नष्ट कर देते हैं।”
प्रकृति में समय बिताने से हम समर्पण की स्थिति में रहते हैं क्योंकि हम पारिस्थितिकी तंत्र के ही एक अंग हैं, हम अलग-अलग प्राणी नहीं हैं। प्रत्येक प्राणी का अस्तित्व संपूर्ण तंत्र पर निर्भर है। स्वाभाविक रूप से विनम्रता विकसित होती है क्योंकि हम विशाल ब्रह्मांड में बहुत सूक्ष्म बिंदु के समान हैं। जब चारों ओर जीवन फल-फूल रहा हो और हर प्रजाति की अपनी विशेषता हो जो हमारे पास नहीं है तब खुद को महत्वपूर्ण समझना हास्यास्पद है। हमने संभवतः अपने शानदार घरों, कारों और हवाई जहाज़ों की वजह से प्रकृति से अलग होने का भ्रम पैदा कर लिया है लेकिन प्राकृतिक जगत के बिना हमारे पास न तो साँस लेने के लिए हवा होगी, न पीने के लिए पानी, न खाने के लिए भोजन और न ही खुद की रक्षा करने के लिए आश्रय होगा।
प्रकृति हमें अपनापन, संबद्धता, सुनना, केवल वही लेना जो हमें वास्तव में चाहिए, असुविधा को स्वीकार करना और दूसरों की भूमिकाओं का सम्मान करना सिखाती है, क्योंकि इन सब के बिना हम प्रकृति में जीवित नहीं रह सकते। जितना अधिक हम खुद को प्रकृति से अलग करते हैं, उतना ही कम हम उन गुणों पर निर्भर होते हैं और हम अपनी स्वाभाविक विनम्रता और निर्भरता से दूर हो जाते हैं। |
इसके अलावा, हमारा मौलिक स्वरूप संसार को प्यार करना है, हर चीज़ में उसके मर्म को महसूस करना है। पूर्वजों ने उसे छोटे-छोटे लेकिन सार्थक तरीकों से सम्मान दिया, जैसे जल, अग्नि, पृथ्वी के साथ सूर्य को अर्घ्य देना। इसके द्वारा वे ब्रह्मांड की आत्मा को अंगीकार करते थे। आज भी कई ग्रामीण लोग ऐसा ही करते हैं। हम उनकी विलक्षणता पर मुस्कुरा सकते हैं लेकिन हममें से कई लोग अपने पूर्वजों या अपने सृष्टिकर्ता के लिए मोमबत्ती जलाने में श्रद्धा महसूस करते हैं, भले ही हम भौतिकता को पूज रहे हों। और हममें से अधिकांश लोग प्रकृति में तरोताज़ा महसूस करते हैं क्योंकि हम अपने चारों ओर जीवन शक्ति के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं।
फ़ॉस्टर की किताब का प्रचार वाक्य है, ‘फ़ाइंडिंग द वाइल्ड इन अ टेम वर्ल्ड’ अर्थात एक मानव-नियंत्रित संसार में प्राकृतिक संसार को ढूँढना। प्राकृतिक संसार को ईश्वर की रचना और नियंत्रित को मानवीय रचना समझें। कौन सा सही लगता है? आध्यात्मिक यात्रा में हम अपनी सीमित मानवीय रचना को हटाकर ईश्वर की रचना को भीतर से प्रकट करने की कोशिश करते हैं। फ़ॉस्टर का प्रेम पर अध्याय इस तरह से शुरू होता है, “अपनी आँखें बंद करें और गहरी साँस लें। जैसे-जैसे आप साँस लेते हैं और छोड़ते हैं, आप जो भी सुनते हैं उस पर ध्यान दें। हो सकता है कि यह करीब से गुज़रती कारों की, आपके पड़ोसी द्वारा बगीचे की घास काटने की या ऊपर उड़ते किसी विमान की आवाज़ हो। इस पर भी विचार करें कि आपने अपनी आँखें बंद करने से पहले क्या देखा था। एक पल के लिए सोचें कि यह मानव-नियंत्रित दुनिया कितनी नई है, यह उससे कितनी अलग है जिसे आपके हज़ारों-हज़ारों पूर्वजों ने अपने आस-पास देखा होगा और जिसे उन्होंने सुना होगा। अब एक पल के लिए उनकी दुनिया का अनुभव करने की कोशिश करें। क्या आप अपने मन की आँखों से उनकी प्राकृतिक दुनिया को देख सकते हैं?”
प्रकृति हमें अपनापन, संबद्धता, सुनना, केवल वही लेना जो हमें वास्तव में चाहिए, असुविधा को स्वीकार करना और दूसरों की भूमिकाओं का सम्मान करना सिखाती है, क्योंकि इन सब के बिना हम प्रकृति में जीवित नहीं रह सकते। जितना अधिक हम खुद को प्रकृति से अलग करते हैं, उतना ही कम हम उन गुणों पर निर्भर होते हैं और हम अपनी स्वाभाविक विनम्रता और निर्भरता से दूर हो जाते हैं।
मैं क्रेग फ़ॉस्टर के शानदार वृत्तचित्र और पुस्तक के लिए आभारी हूँ। मैं अब अपने बचपन और वैज्ञानिक प्रशिक्षण को आध्यात्मिक यात्रा के लिए एक अच्छी तैयारी के रूप में देखती हूँ जो मैंने इकत्तीस-बत्तीस की आयु में शुरू की थी। यह यात्रा मुझे किसी भी संभावित कल्पना से परे गहरे और बेहतर तरीकों से बनाए रखती है।
इस पूरे जीवनकाल में मैं यह सीख चुकी हूँ कि विज्ञान और आध्यात्मिकता में कोई विरोधाभास नहीं है। एक समय पर मुझे उन प्रतिमानों को छोड़ने के लिए अलगाव बनाने की आवश्यकता थी जो मेरी चेतना को सीमित करते थे और मेरे वैश्विक नज़रिए का विस्तार करते थे। लेकिन अंततः पहेली के विभिन्न टुकड़ों को एकीकृत करने की आवश्यकता थी। मैं वास्तव में आभारी हूँ कि जीवन ने वह संभावना प्रदान की है। प्रकृति और ईश्वर जीवन शक्ति के पूरक और विनिमेय पहलू हैं और मेरी आत्मा यहाँ आनंदित व कृतज्ञ रहते हुए दोनों की सराहना करती है और जीवन की शुद्धता का अनुभव भी करती है।
अभ्यास -
फ़ॉस्टर निम्नलिखित सैन अभ्यास बताते हैं जिसे ‘रोप्स टू गॉड’ यानी ‘ईश्वर तक पहुँचने की डोर’ कहा जाता है।
“आप सुबह बाहर जाते हैं और एक पक्षी पास के पेड़ पर आकर बैठता है। आप उस पक्षी के साथ एक संबंध बनाते हैं, बस जुड़ाव की एक कोमल भावना, जिसमें आप पक्षी की उपस्थिति और दुनिया में उसके स्थान को स्वीकार करते हैं। फिर आप एक छोटे से कीड़े को एक शाखा पर चढ़ते हुए देखते हैं। आप उसके साथ भी एक संबंध बनाते हैं। ‘मैं तुम्हें देख रहा हूँ कीड़े। तुम हमारी दुनिया के लिए जो करते हो, उसके लिए मैं आभारी हूँ।’
आप सभी जानवरों और पौधों के साथ ऐसा करते हैं, जिससे आप जुड़ाव और प्रेम के सूत्रों का जाल बना देते हैं। फिर एक दिन सभी सूत्र एक साथ जुड़कर एक डोर बनाते हैं, जो संपूर्ण जीवन के स्रोत तक पहुँचने का एक मार्ग है।”