घररिश्तेपानी का प्रण

हम सब महान गाथाएँ पसंद करते हैं। हम उनके पात्रों के सुख-दुख स्वयं भी महसूस करते हैं और एक परिवार की पीढ़ियों को जीवन के उतार-चढ़ावों से गुज़रते देखते हैं। ये महा उपन्यास अक्सर हमारे अंतर को गहराई से छूते हैं क्योंकि वे एक विशेष स्थान व समय और मानवीय कथाओं के सौंदर्य का वर्णन करते हैं। अब्राहम वर्गीस का नवीनतम उपन्यास, ‘द कोवेनंट ऑफ़ वाटर’एक ऐसी ही पुस्तक है। इसे विश्व भर में बहुत सराहा गया है। इसके बारे में ओपरा विन्फ़्रे कहती हैं, “द कोवेनंट ऑफ़ वाटर मेरे द्वारा आज तक पढ़ी गई सबसे उत्कृष्ट और दिलचस्प पुस्तकों में से एक है।” बुक्स एंड बियॉन्ड की तारा खंडेलवाल उनका साक्षात्कार ले रही हैं जिसमें वे उनकी लेखन प्रक्रियाचिकित्सा क्षेत्रकेरल और इस पारिवारिक गाथा के बारे में बात कर रही हैं कि कैसे स्थान और इतिहास इस महान उपन्यास में एक साथ आते हैं।

 

प्र. - डॉक्टर अब्राहम वर्गीस की नवीनतम पुस्तक ‘द कोवेनंट ऑफ़ वाटर’ (पानी का प्रण) 700 पृष्ठ की एक पारिवारिक गाथा है जिसकी काल अवधि वर्ष 1900 से 1977 तक की है। यह पुस्तक केरल की पृष्ठभूमि में लिखी गई है और इसमें एक परिवार की तीन पीढ़ियों की कहानी है जिसमें हर पीढ़ी को एक अजीब-से दुख से गुज़रना पड़ता है। हर पीढ़ी के एक सदस्य की मृत्यु पानी में डूबने से होती है। यह परिवार ईसाई समुदाय से है और इनके पूर्वज ईसाई धर्म के प्रचारकों के समय मौजूद थे। इस कहानी की शुरुआत में कथा की एक पात्र, बड़ी अम्माची, का बाल-विवाह एक चालीस वर्षीय व्यक्ति के साथ होता है। इस उपन्यास में पानी की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है और यह पुस्तक वर्ष 2023 की न्यूयार्क टाइम्स की 100 सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों की सूची में आ चुकी है।

नमस्ते, डॉक्टर वर्गीस!

नमस्ते और धन्यवाद! आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा।

प्र. - आपने उल्लेख किया है कि इस पुस्तक को लिखने का विचार आपको तब आया जब आपकी भतीजी ने अपनी दादी (आपकी माँ) से एक सामान्य-सा प्रश्न पूछा, “जब आप बच्ची थीं तब जीवन कैसा था?” इसके प्रत्युत्तर में आपकी माँ ने, जो उस समय सत्तर वर्ष से अधिक उम्र की थीं, चित्रों, उपाख्यानों और वंश-वृक्ष सहित 40 पृष्ठ का एक लेख लिखा। यही हस्तलेख आपके उपन्यास लिखने के लिए प्रेरणा और स्रोत-सामग्री बन गया। क्या आप हमें बताएँगे कि आपकी माँ के उपाख्यान में से कितना भाग इस उपन्यास में लिया गया है? और यह सब कैसे हुआ?

मेरी माँ एक बहुत प्रतिभाशाली कलाकार थीं और जब मेरी भतीजी ने उनसे यह प्रश्न पूछा तो वे स्तब्ध रह गईं कि इस बच्ची को, जो अमेरिका में बड़ी हो रही है, कैसे बताएँ कि भारत में उनका जीवन कैसा था और फिर छोटी उम्र में अफ़्रीका जाकर पढ़ाना और उसके बाद अमेरिका जाकर पढ़ाना कैसा था? इसलिए उन्होंने लिखना शुरू कर दिया। वास्तव में उनका यह लेखन स्कूल की नोटबुक के 120 पृष्ठों में था जिसमें सुंदर चित्र बने हुए थे। ये हमारे सारे परिवार के लिए एक छोटा सा खज़ाना था और हमने उसकी कई प्रतियाँ बनवाईं।

जब उनकी आयु 90 से अधिक हो गई तब तक मैं अपनी दो पुस्तकें लिख चुका था और तब मैंने उनके लेख को फिर से पढ़ा। इसे दुबारा पढ़ने पर मुझे याद आया कि जिस समय का वे अपने लेख में वर्णन कर रही थीं उस समय हमारी संस्कृति और समाज बहुत समृद्ध था और मैंने अपनी कथा को इसी पृष्ठभूमि पर लिखने का निर्णय लिया। इससे मेरी माँ बहुत उत्साहित थीं और वे मेरी सबसे बड़ी शोध सहायक बन गईं। अपनी मृत्यु के कुछ हफ़्ते पहले तक भी वे कोई नई कहानी, जो उन्हें याद आ जाती थी, सुनाने के लिए मुझे फ़ोन करती थीं। दुर्भाग्य से वे इस पुस्तक को प्रकाशित होते देखने के लिए जीवित नहीं रहीं।

हालाँकि मैं उस हस्तलेख से प्रेरित हुआ था लेकिन मैंने उनकी वास्तविक कहानियों का उपयोग नहीं किया। उसके बजाय मैंने वास्तविक परिस्थिति की अपनी जानकारी का उपयोग किया। हर साल हम लोग गर्मियों में केरल जाते थे। मैं मद्रास में मेडिकल स्कूल में पढ़ता था और छुट्टियों में अपने दादा-दादी के घर केरल जाया करता था। मैंने अपनी दादी-नानी से काफ़ी प्रेरणा ली है।

यह पुस्तक वास्तव में शक्तिशाली व साहसी महिलाओं के बारे में है जिन्हें दुनिया में विशेष सम्मान नहीं मिला। उनकी कहानियाँ अज्ञात रह गईं। लेकिन उनके परिवार उनके साहस का सम्मान करते हैं। इन महिलाओं ने अपने जीवन में अत्यधिक कष्ट झेले हैं। मेरी दादी और नानी दोनों ने अपने किशोर पुत्रों को खोया। एक की मृत्यु रेबीज़ से हुई जबकि दूसरे की मृत्यु टायफ़ॉइड से हुई थी। और इस सबके बावजूद वे अपने विश्वास और आंतरिक शक्ति के सहारे जीवन में आगे बढ़ती रहीं और उन्होंने सारे परिवार को भी संभाला। इस पुस्तक की शुरुआत मेरी माँ के लेख से हुई, फिर कुछ मेरी स्मृतियाँ थीं और शेष भाग काल्पनिक है।

 

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प्र. - तो इसकी शुरुआत दादी समान स्त्री से होती है। हम बड़ी अम्माची को बारह वर्ष की उम्र का देखते हैं। फिर हम देखते हैं कि वे बड़ी व समझदार हो रही हैं और उनके अपने बच्चे होते हैं। मैं यह जानने के लिए बहुत उत्सुक थी कि आप उस रहस्यमय स्थिति के बारे में कैसे सोच सके जिसने उनके परिवार को हर पीढ़ी में प्रभावित किया। इसका प्रभाव उनके कई क्रिया-कलापों पर दिखाई देता है।

मैं वैसा लेखक नहीं हूँ जिसे शुरू करने के पहले ही पूरी कहानी मालूम होती है। मैं सदैव एक एहसास, एक छवि से शुरू करता हूँ। इस पुस्तक में वह छवि युवा दुलहन की है जिसे मैं आगे बढ़ाता रहा। मुझे यह तो पता था कि मुझे कम से कम तीन पीढ़ियों की कहानी लिखनी थी क्योंकि मुझे बड़े कथानक वाले उपन्यास अच्छे लगते हैं। और लंबे समय तक चिकित्सा विज्ञान से जुड़े होने का एक लाभ यह है कि मैंने ऐसी बीमारियाँ देखी हैं जिनका हमारे पास पहले तो बस नाम हुआ करता है, फिर 15-20 साल के बाद हम उनकी कार्य प्रणाली को समझ पाते हैं और उसके 10 वर्षों के बाद रोग का परीक्षण करने की सुविधा होती है और फिर उसके बाद उपचार शुरू होता है। चिकित्सा क्षेत्र की यह एक आश्चर्यजनक विकास यात्रा है।

इसके अलावा उपन्यास को केरल की पृष्ठभूमि में लिखा गया है। यह बात महत्वपूर्ण है क्योंकि मैं मानता हूँ कि भूगोल ही भाग्य है। केरल में पानी एक सर्वव्यापी रूपक है। आप इस तथ्य को नकार नहीं सकते कि पानी यहाँ हर जगह है। पानी यहाँ का प्रमुख परिवहन तंत्र है जो सभी को जोड़ता है और मानसून वह धड़कते हुए हृदय की तरह है जो पंप के समान पानी को हर जगह पहुँचाता है।

लंबे समय तक चिकित्सा विज्ञान का शिक्षक होने के नाते मैं उन सभी दुर्लभ बीमारियों के बारे में जानकारी को संरक्षित रखता हूँ जिनके बारे में मैं सोचता हूँ। जब कभी अस्पताल में खाली वक्त होता है तब उन बीमारियों के बारे में अपने विद्यार्थियों और युवा डॉक्टरों से प्रश्न पूछता हूँ। उदाहरण के लिए, वह कौन सी आनुवांशिक बीमारी है जिसके कारण लोग पानी में डूबकर मरते हैं? इस बीमारी के बारे में मुझे बहुत पहले से पता था और यह बहुत कम लोगों को होती है। जब मैंने यह उपन्यास लिखना शुरू किया तब मुझे लगा कि इस भूमि में, जहाँ लोग चलना सीखने से पहले तैरना सीख लेते हैं, यह कितना रोचक होगा अगर मैं उन्हें वह आनुवांशिक स्थिति दे दूँ जिससे वे पानी से दूर रहते हैं और इसके बावजूद वे पानी में डूबकर ही मरते हैं। तो इस कहानी में यह कुछ मेरी इस बीमारी के बारे में जानकारी से और कुछ सौभाग्य से आ गया। लेकिन लेखन एक रहस्यमय कार्य है। आपको वास्तव में पता नहीं होता कि आपका अवचेतन मन क्या कर रहा है। वह संपर्क जोड़ता रहता है और किसी विशिष्ट समय पर आकर ही आपको इसका पता चलता है।

प्र. - आपने सचमुच केरल के सौंदर्य को, उस जगह की संरचना को जीवंत बना दिया है। मैं इससे थोड़ा पीछे जाकर आपके बारे में और जानना चाहती हूँ। आपने लेखन कब शुरू किया?

मैं हमेशा ही किताबें पढ़ने का शौकीन रहा हूँ। और मैं कहूँगा कि यह लेखक बनने की पूर्व आवश्यकता है। मुझे लगता है कि मुझमें इस बात की समझ थी कि श्रेष्ठ लेखन का प्रतिमान कितना ऊँचा है जिसे मुझे पार करना ही होगा। लेकिन मुझे चिकित्सा विज्ञान से भी प्यार था और लेखक बनने का मेरा कोई सपना भी नहीं था। जब अमेरिका में HIV महामारी की तरह फूट पड़ा तब मैं बोस्टन में संक्रामक बीमारियों के क्षेत्र में प्रशिक्षण ले रहा था। मेरा प्रशिक्षण जब पूरा हुआ तब तक इसके वायरस की खोज हो चुकी थी और इसकी जाँच संभव थी। मैं टेनेसी के एक छोटे शहर में जा रहा था। सब लोग कहने लगे कि यहाँ की 50 हज़ार की ग्रामीण जनसंख्या में शायद एक वर्ष में HIV का एक ही मरीज़ मिले। लेकिन इसके विपरीत बहुत ही थोड़े समय में मैं HIV के 100 मरीज़ों का इलाज कर रहा था। ताज्जुब की बात यह थी कि इतने छोटे शहर में इतने ज़्यादा HIV के रोगी क्यों थे?

जैसे-जैसे चीज़ें सामने आईं, यह कोई बड़ा रहस्य नहीं रहा। मैं जल्दी ही समझ गया कि ऐसा क्यों हो रहा था। यह अमेरिकी लोगों के स्थानांतरण के कारण हो रहा था। यह स्थानांतरण हर छोटे शहर में हो रहा था। छोटे शहरों में पले-बड़े युवा उन्हीं कारणों से छोटे शहरों को छोड़ देते थे जिनके कारण हम सभी छोटे शहरों को छोड़ देते हैं - नौकरी, शिक्षा और अवसरों की तलाश। लेकिन यहाँ इसका एक और भी कारण था कि वे युवा समलैंगिक थे और अपने मित्रों व रिश्तेदारों के निकट रहकर उनकी निगरानी में जीवन जीना नहीं चाहते थे। इसलिए वे बड़े शहरों जैसे न्यूयॉर्क, सैनफ़्रांसिस्को, मियामी आदि में रहने के लिए चले गए। वहाँ रहते हुए किसी समय वे वायरस से संक्रमित हो जाते और फिर, जब वे बीमार हो जाते तब अपने घर वापस आ जाते थे। मैं इस यात्रा के अंतिम पड़ाव पर उनकी देखभाल करने के लिए वहाँ था। मैंने एक वैज्ञानिक शोध पत्र भी लिखा था जिसमें इस स्थानांतरण की घटना का विस्तार से वर्णन किया था। इस शोध पत्र को काफ़ी मान्यता मिली क्योंकि इसमें कहा गया था कि ऐसा हर छोटे शहर में हो रहा था। लेकिन मैंने महसूस किया कि वैज्ञानिक भाषा इस यात्रा की पीड़ा को, उन परिवारों के दुर्भाग्य को या उस समय की मेरी अपनी पीड़ा को व्यक्त नहीं कर सकती। मैं हम-उम्र युवा पुरुषों की देखभाल कर रहा था और इलाज न होने के कारण वे मर रहे थे। वह मेरे जीवन का सबसे मार्मिक अनुभव था।

 

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यही वह समय था जब मैं लेखक बन गया। मैंने निश्चय किया कि मुझे यह कहानी लोगों को बतानी है। मैंने पाया कि लिखना कठिन है लेकिन मैंने यह भी पाया कि मुझे लिखने की कोशिश करने में मज़ा आया और जब मैं इसमें सफल हुआ तब बहुत आनंद मिलने लगा। मैं कभी जल्दबाज़ी नहीं करता, मैं धीरे-धीरे लिखता हूँ। तो इस तरह परिस्थितिवश मैं लेखक बन गया।

प्र. - और अब आप विश्व के सबसे प्रतिष्ठित लेखकों में से एक बन गए हैं। आपने अपनी लेखन कला को अपने प्रथम अनुभव से आगे किस तरह से तराशा है? आपके लेखन में बहुत सारा जोश है, बहुत सी भावनाएँ भरी हुई हैं और यह आपके पात्रों के प्रति आपकी समानुभूति में दिखाई देता है। क्या आपके कोई गुरु हैं या आपको अपने लेखन में सुधार के लिए कोई सलाह मिलती है?

मुझे एक प्रतिष्ठित भारतीय लेखक कहने के लिए धन्यवाद! मेरे लिए इसे महसूस करना कठिन है क्योंकि मैं वही इंसान हूँ जो मैं तब था जब मैंने लिखना शुरू किया था। मैं बेहद भाग्यशाली हूँ क्योंकि ऐसे कई लेखक हैं जिन्होंने बहुत अच्छे उपन्यास लिखे हैं लेकिन उन्हें अपने पूरे जीवन काल में ख्याति नहीं मिली या जिन्हें कभी भी पहचान नहीं मिली। इसके लिए बहुत अच्छा भाग्य चाहिए और मैं बहुत भाग्यशाली हूँ। मेरे पास कोई विशेष योजना नहीं है। मेरा लक्ष्य हमेशा बस एक अच्छी कहानी होता है जिसे अच्छी तरह से व्यक्त किया जाए। मैं किसी मुद्दे को या किसी धार्मिक विचार को आगे बढ़ाने की कोशिश नहीं करता हूँ। बस, एक अच्छी दमदार कहानी हो, वैसी जिसे मैं खुद पढ़ना पसंद करूँ।

इसके अलावा, लोगों को अक्सर यह एहसास नहीं होता है कि एक अच्छे संपादक का होना भी कितना ज़रूरी है। मैं भाग्यशाली रहा हूँ कि मुझे अपने उपन्यासों के लिए बहुत अच्छे संपादक मिले। कभी-कभी मेरा चिकित्सकीय प्रशिक्षण मुझसे चाहता है कि मैं अपने लेखन में ढेर सारी तकनीकी सामग्री का प्रयोग करूँ, लेकिन तब संपादक कहता है कि, नहीं, यही दिलचस्प है। यह भाग्य, सतत प्रयास और कठोर परिश्रम का सम्मिलित प्रभाव है। मुझे कभी इसकी उम्मीद नहीं थी। यह सचमुच ईश्वर की कृपा है।

अगर आदर्श लेखकों की बात करें तो मेरे लिए वे कई हैं, जैसे जॉन इरविंग, फ़ौक्नर, डिकेंस, गेब्रियल गार्सिया मार्केज़, जॉर्ज ऐलियट आदि। … मैं कुछ लोगों के नाम लूँगा तो ऐसा लगेगा कि मैं दूसरे लेखकों की उपेक्षा कर रहा हूँ। मैं अलंकृत गद्य भी पसंद करता हूँ। जब डॉक्टर लेखकों की बात आती है तो लोग सौमरसेट मौम के बारे में सोचते हैं। मैं भी सौमरसेट मौम को पसंद करता हूँ लेकिन उनकी शैली रिपोर्टिंग यानी सूचना देने वाली है। उन्होंने अपनी ओर से बिलकुल सही सूचना दे दी और बाकी आपको निर्मित करना है। जबकि मेरी शैली यह है कि मैं सूचना तो देना चाहता हूँ लेकिन मैं पाठक को चीज़ों का एहसास भी दिलाना चाहता हूँ और उनके व्यक्तित्व के द्वंद्वों पर केंद्रित रहता हूँ।

प्र. - मेरे जैसे संपादकों को बहुत खुशी होती है जब आपके जैसा बड़ा लेखक संपादक को भी श्रेय देता है क्योंकि अक्सर यह एक-दूसरे के सहयोग से होता है।

जी हाँ, और एक अन्य महत्वपूर्ण सहयोगी होता है पाठक। एक पुस्तक का अस्तित्व कहाँ होता है? वह अलमारी में तो नहीं रहती! लेखक अपने शब्द देता है और पाठक उसे अपनी कल्पना में शामिल करते हैं और इन दोनों के मध्य में सपना उभर आता है। यह सपना पाठक का होता है और हर पाठक का स्वप्न थोड़ा सा अलग होता है। वे पात्रों को अपने अलग नज़रिए से देखते हैं।

मेरे लिए पुस्तक का सफल होना लेखन का आनंद नहीं है, बल्कि पाठक का स्वप्न है। आप एकांत में घंटों तक लिखते रहते हैं जिसे न कोई जानता है और न ही कोई आपको देखता है। हर व्यक्ति समझता है कि आप बुरे इंसान हैं क्योंकि आप उनकी सगाई या सालगिरह में नहीं जाते हैं। अगर मैं मस्तिष्क का सर्जन होता और कहता, “मैं आपके समारोह में नहीं आ सकूँगा क्योंकि मैं अभी ऑपरेशन कक्ष में हूँ,” तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। लेकिन जब आप यह कहते हैं, “मैं नहीं आ सकूँगा क्योंकि मैं लिख रहा हूँ,” तो वे कहते हैं कि यह कैसा आदमी है?” मेरे कहने का मतलब है कि आप एकांत में लिखते हैं और ऐसे क्षण की कल्पना करते हैं जिसमें एक पाठक, आप जैसा कोई व्यक्ति, उस पुस्तक का आनंद लेता है और उसका स्वप्न भी अद्भुत होता है। वही पुरस्कार है! ऐसे व्यक्तियों के लिए हम लिखते हैं। हम उनके लिए लिखते हैं जो हमारे शब्दों को ध्यान से पढ़ते हैं। यह अमूल्य है।

प्र. - मुझे आपका यह विचार पसंद आया। हर पाठक कहानी को लेकर अलग ढंग से कल्पना करता है और यह बहुत ही व्यक्तिगत गतिविधि है। मुझे पढ़ना पसंद है क्योंकि यह बहुत अंतरंग गतिविधि होती है। आपकी पुस्तक पढ़ते हुए आप उसकी कहानी का हिस्सा बन जाते हैं। आप उन पात्रों के साथ मानसिक तौर पर जुड़ जाते हैं - बड़ी अम्माची से लेकर उनके बच्चों और फ़िलिपोस, उसके बेटे और फ़िलिपोस की पत्नी के साथ जुड़ते हैं।

ये सभी ऐसे पात्र हैं जिनकी अपनी अनोखी यात्रा है। इसमें बहुत सी बारीकियों पर ध्यान दिया गया है। आप डिग्बी जैसे किसी शख्स से मिलते हैं जो एक स्कॉटिश सर्जन है और अपने व्यवसाय हेतु भारत आता है और यहाँ की संस्कृति में घुल-मिल जाता है। अपरिहार्य रूप से उसका जीवन भी दूसरे पात्रों के साथ गुंथ जाता है।

इनमें से कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रिय है और आप सबसे ज़्यादा किसके साथ अपना जुड़ाव महसूस करते हैं? और कौन-सा चरित्र लिखने में आपको सबसे अधिक कठिनाई हुई?

अच्छे सवाल हैं! क्योंकि उन्हें मैंने रचा है इसलिए किसी न किसी स्तर पर वे सभी मुझे प्रिय हैं। लेकिन फ़िलिपोस के पात्र के साथ मैं अधिक तादात्म्य पाता हूँ क्योंकि वह सबसे अधिक चिंतनशील है। जब न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस पुस्तक की समीक्षा की (जो कि अच्छी समीक्षा थी), उसमें समीक्षक ने लिखा कि सारे पात्र इतने अच्छे हैं कि वे वास्तविक नहीं लगते। लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूँ। पहले तो इसलिए कि संसार में सभी लोग हमेशा अच्छा बनने की कोशिश करते हैं। कोई भी सुबह यह निश्चय करके नहीं उठता है कि वह बुरा बनेगा। लेकिन अंत में लोग कुछ बुरे काम कर देते हैं और किस्मत से अगर किसी तरह वे फ़िलिपोस के समान अंतर्दृष्टि विकसित कर लेते हैं और बुराई से मुक्ति का मार्ग पा लेते हैं तो वे अपनी गलती को सुधारने की कोशिश करते हैं।

मेरे खयाल से मेरे सभी पात्रों में कमियाँ हैं; वे सभी गलतियाँ करते हैं। सभी मनुष्यों में कमियाँ होती हैं लेकिन कोई अपने आपको पापी नहीं समझता। वे उस चीज़ से प्रेरित होते हैं जिसे वे पूरी तरह से तार्किक और स्वीकार्य समझते हैं। इसलिए मैं फ़िलिपोस के साथ अधिक निकटता पाता हूँ, शायद इसलिए भी कि वह पुरुष है। मुझे स्त्रियों के विचारों की कल्पना करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी थी लेकिन फ़िलिपोस के मामले में जितना हो सकता था मैं उतना उसके निकट गया।

मेरे लिए पुस्तक का सफल होना लेखन का आनंद नहीं हैबल्कि पाठक का स्वप्न है।

मेरे लिए एल्सी का पात्र गढ़ना सबसे मुश्किल था क्योंकि वह कहानी से गायब हो जाती है। वह कुछ-कुछ पहेली की तरह है, थोड़ी अनजानी-सी। एक ओर मैं उसका वर्णन इस तरह करना चाहता था कि पाठक पूरी तरह से उसकी कल्पना कर सकें, लेकिन मुझे उसका एक अंश अनदेखा भी रखना था। यह थोड़ा पेचीदा था और इसके लिए काफ़ी काम करना पड़ा।

 

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प्र. - वास्तव में मेरा प्रिय पात्र एल्सी ही है जो फ़िलिपोस की पत्नी है। पहले तो इसलिए कि वह इतनी जीवंत महिला है और एक कलाकार है। दूसरे, मुझे उसके और फ़िलिपोस के बीच शादी के बाद आए बदलाव को देखकर बहुत अच्छा लगा - माँ के रूप में उसकी भूमिका और फिर वह पूरी रहस्यात्मकता। मुझे लगता है कि वह पुस्तक का सबसे दिलचस्प पात्र है।

मैं कहानी के समापन को नहीं भूल सकती। मैं रात में सो नहीं सकी। वह सबसे अधिक जीवंत दृश्य था। हालाँकि पुस्तक बहुत लंबी है, फिर भी इसका कोई भी भाग अप्रासंगिक नहीं लगा। मैं हर पात्र की यात्रा में तल्लीन थी। इसमें कई मर्मभेदी क्षण थे और एक समय पर मुझे पुस्तक को बंद करके थोड़ी देर के लिए रख देना पड़ा था।

उनके लिए इतनी कठिनाइयों और इतनी हानियों की रचना करने के पीछे आपकी सोच क्या थी?

मैं कहना चाहूँगा कि वर्ष 1900 से 1976 की अवधि में जितना नुकसान वास्तव में हुआ था, उसकी तुलना में पुस्तक में बहुत कम नुकसान दिखाए गए हैं। मेरी दादी व नानी दोनों ने अपने एक बच्चे को खोया था। क्या आप किशोर लड़कों को खोने की कल्पना कर सकती हैं - एक रेबीज़ से और एक टाइफ़ॉइड से? एक डॉक्टर के तौर पर मैं इसे मानने के लिए प्रशिक्षित हूँ कि जीवन एक खत्म होने वाली अवस्था है और हम सब एक दिन मर जाने वाले हैं। लेकिन अधिकांश लोग जीवन में निहित दुर्भाग्य और त्रासदी को नकारते हैं। यह सच है कि किसी परिवार की कहानी में आप जितनी त्रासदी आराम से सह पाते हैं, संभवतः उससे कहीं अधिक भी हो सकती है। यह आम बात है।

एक डॉक्टर के तौर पर मैं इसे मानने के लिए प्रशिक्षित हूँ कि जीवन एक खत्म होने वाली अवस्था है और हम सब एक दिन मर जाने वाले हैं। लेकिन अधिकांश लोग जीवन में निहित दुर्भाग्य और त्रासदी को नकारते हैं।

मैंने वास्तव में उन मौतों को कथानक में नहीं रखा था। लेकिन कहानी लिखते हुए सहसा लगा कि ऐसा ही होने वाला है। और मैं भी उतना ही दुखी था जितना आप हुई होंगी। हर बार मैं कुछ घटनाओं को पुनः सुधारता था तब मेरी आँखों में आँसू आ जाते थे। मेरे लिए भी वे पल मर्मभेदी थे क्योंकि वे वास्तविक लगते थे। मुझे नहीं लगता कि मैंने कभी कोई त्रासदी बस यूँ ही गढ़ दी हो। हर प्रसंग हमेशा कथानक के अनुरूप वास्तविक लगता है और कहानी का स्वाभाविक अंग है।

प्र. - जिस तरह स्वास्थ्य की स्थितियाँ कथानक को आगे बढ़ाती हैं, यह दिलचस्प है। और कुछ हद तक इसी से कहानी प्रभावी बनती है। कुष्ठ रोग आज भी समाज में एक हद तक कलंक माना जाता है और लोगों में इससे संक्रमित होने का डर होता है। आपका पात्र डॉक्टर रून, कुष्ठ रोगियों के लिए एक बस्ती बनाता है और उनका इलाज ऐसे करता है जैसे वे उसके अपने हों। उसे कुष्ठरोग से संक्रमित होने का भय नहीं लगता। आपने अपनी पुस्तक में कुष्ठरोग को शामिल करने के बारे में क्यों सोचा?

संक्रामक रोगों के चिकित्सक के रूप में कुष्ठरोग मुझे आकर्षित करता है। यह एक धीमा संक्रमण है और इसका इलाज करना कठिन है क्योंकि इसका जीवाणु इतना धीरे-धीरे विभाजित होता है कि जो औषधियाँ कोशिका विभाजन को रोकने का कार्य करती हैं, इस पर कारगर नहीं होती हैं। मुझे याद है कि मैं बचपन में सड़क पर कुष्ठ रोगियों को देखकर डर जाता था। सौभाग्यवश अब यह रोग कम पाया जाता है। मेडिकल स्कूल में जाकर कुष्ठरोग के शिक्षण सत्रों के द्वारा ही मैं समझ पाया कि रोगी के डरावने स्वरूप से उनकी आत्मा का कोई लेना-देना नहीं होता है। कुष्ठरोग के साथ सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि न सिर्फ़ यह आपकी नाड़ियों को कुंठित करता है और आपको विकृत स्वरूप देता है, बल्कि यह आपको समाज से भी एक तरह से बहिष्कृत कर देता है जो स्वयं बीमारी से भी अधिक भयावह है। इसलिए यह बीमारी मुझे हमेशा से आकर्षित करती रही है। मैंने जिस समय का वर्णन किया है उस समय यह बहुत आम बीमारी होती थी।

प्र. - इसके बारे में पढ़कर मुझे भी याद आया कि जब मैं बच्ची थी तब यह एक वास्तविकता थी। पुस्तक की विषय-वस्तु है - एक लड़कीबड़ी अम्माची, जो उम्र में बहुत छोटी है लेकिन उसका विवाह एक बड़ी उम्र के व्यक्ति से होता है, फिर वह अपने तरीके से काम करते हुए हर परिस्थिति से गुज़रते हुए अपने परिवार को संभालती है; एक पात्र डिग्बी है जो औपनिवेशिक भारत के साथ-साथ नारीवाद का भी प्रतिनिधित्व करता है। और आपने जातिवाद, नशा और यौन उत्पीड़न के बारे में भी लिखा है। क्या इतनी तरह के पात्रों और विषय-वस्तुओं को साथ लेकर चलना और उनके साथ न्याय करना आपके लिए चुनौतीपूर्ण था?

आपको यह सुनिश्चित करना होता है कि आपका पाठक परेशान न हो। मेरे एक लेखन गुरु कहते थे कि ऐसा सोचो कि पाठक की पीठ पर बोझ लदा है और वह पहाड़ पर चढ़ रहा है। आपको यह सुनिश्चित करना है कि आप उसके बोझ में अगर कुछ भी वृद्धि करें तो वह ऐसी चीज़ होनी चाहिए जिसकी ज़रूरत उसे ऊपर पहुँचने के बाद हो। अगर ऊपर चढ़ने के बाद पाठक यह महसूस करे कि इस बोझ की कोई ज़रूरत नहीं थी तो वह आपसे नाराज़ हो जाएगा। पुस्तक की कहानी लंबी होना भी एक समस्या है। लेकिन अगर कहानी की लंबाई आपकी कहानी तय करेगी तो वह उचित नहीं है। कहानी उतनी ही लंबी होनी चाहिए जितनी ज़रूरी है।

 

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हर बार मैं कुछ घटनाओं को पुनः सुधारता था तब मेरी आँखों में आँसू आ जाते थे। मेरे लिए भी वे पल मर्मभेदी थे क्योंकि वे वास्तविक लगते थे। मुझे नहीं लगता कि मैंने कभी कोई त्रासदी बस यूँ ही गढ़ दी हो। हर प्रसंग हमेशा कथानक के अनुरूप वास्तविक लगता है और कहानी का स्वाभाविक अंग है।


इसके अलावा कुछ छोटे-छोटे पात्र भी थे जो मज़ेदार थे लेकिन जब तक हमने कहानी को कुछ रूप लेते देखा, यह स्पष्ट हो गया कि वे कथानक को आगे नहीं बढ़ा रहे थे और ध्यान भटका रहे थे। इसलिए मैं यह कहना चाहूँगा कि कहानी में ज़्यादातर पात्र किसी न किसी तरीके से कथानक को आगे बढ़ाते हैं या कहानी के किसी पक्ष के बारे में कोई जानकारी देते हैं, इसलिए वे ज़रूरी हैं।

सबसे ज़्यादा संतुष्टि देने वाली बातों में से एक मैंने ओपरा विनफ़्रे से सुनी थी। उन्होंने कहा कि वे पुस्तक में इतना डूब गई थीं कि एक समय पर वे यह देखने के लिए रुकीं कि पुस्तक के कितने पृष्ठ पढ़ने बाकी थे - इसलिए नहीं कि वे इसके पूरा होने के लिए व्यग्र थीं बल्कि इसलिए कि वे नहीं चाहती थीं कि वह समाप्त हो जाए। किसी लेखक के लिए यह सबसे ज़्यादा शानदार बात होती है। अगर आप किसी कहानी में डूब जाते हैं तो आप यह नहीं देखते कि वह कितनी लंबी है बल्कि उस अनुभव को आप खत्म नहीं होने देना चाहते।

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प्र. - मेरा अनुभव ऐसा ही था। मैं बहुत तेज़ी से पढ़ती हूँ और मुझे खुद को कहना पड़ा कि मैं धीरे पढ़ूँ। जब यह पुस्तक पूरी हो गई तो मुझे बहुत दुख हुआ। मैं कुछ दिनों के बाद इसे फिर से पढ़ने वाली हूँ और तब उन पात्रों के बारे में नए तरीके से जानने की कोशिश करूँगी।

मैं आपसे “ओपरा प्रभाव” के बारे में बात करना चाहती हूँ। मैं उनके ‘बुक क्लब’ को फ़ॉलो करती हूँ लेकिन मैंने उनको किसी किताब की इतनी तारीफ़ करते नहीं देखा या इतने विस्तार में जाते हुए नहीं देखा जितना आपकी किताब के बारे में उन्होंने किया है। ओपरा द्वारा आपकी पुस्तक की सिफ़ारिश किए जाने पर आपको कैसा लगा?

यह निश्चित ही अविश्वसनीय है। मुझे ओपरा का मेरी पुस्तक चुनने का विचार बहुत अच्छा लगा और उनका उत्साह अद्भुत था। मुझे नहीं पता कि आभार व्यक्त करने के अलावा मैं क्या कहूँ? पुस्तक के साथ जो हुआ उसे स्वीकार करने में मुझे उनसे बहुत मदद मिली। मुझे नहीं पता कि मैं इस तरह की पुस्तक फिर कभी लिख सकूँगा या नहीं। मैंने पुस्तक को लिखने में बहुत अधिक समय लगाया है और बहुत कठिनाइयाँ झेली हैं, तब जाकर इस मुकाम तक पहुँच पाया हूँ। अभी मैं सिर्फ़ इस घटना का आनंद लेने की कोशिश कर रहा हूँ। मेरे कई मित्र ऐसे हैं जो ज़्यादा पढ़ते नहीं हैं लेकिन वे ओपरा से इतने प्रभावित हैं कि उनकी चुनी हुई सभी 104 किताबें उन्होंने पढ़ी हैं। मेरी जानकारी में उन्होंने अमेरिका में और शायद अमेरिका के बाहर भी पुस्तकें पढ़ने के लिए लोगों को जितना प्रेरित किया है उतना मेरी जानकारी के किसी भी अन्य व्यक्ति ने नहीं किया। मार्क ट्वेन ने कहा था कि जो लोग पुस्तकें नहीं पढ़ते और जो नहीं पढ़ेंगे, उनमें कोई फ़र्क नहीं है।

किसी लेखक के लिए यह सबसे ज़्यादा शानदार बात होती है। अगर आप किसी कहानी में डूब जाते हैं तो आप यह नहीं देखते कि वह कितनी लंबी है बल्कि उस अनुभव को आप खत्म नहीं होने देना चाहते।

मैं उन लेखकों में नहीं हूँ जिनकी किताबें सर्वाधिक लोकप्रिय रहती हैं। मैं लोकप्रिय ‘हत्या व रहस्य भरे उपन्यास’ नहीं लिखता जहाँ हर व्यक्ति अगली पुस्तक का इंतज़ार करता है। जिस तरह की किताबें मैं लिखता हूँ, अगर वे थोड़ी भी सफल हो जाती हैं तो यह ईश्वर की कृपा है। मैं बहुत भाग्यशाली रहा हूँ।

प्र. - निस्संदेह इसके लिए काफ़ी धैर्य की ज़रूरत होती है और आपको अपने व्यवसाय को भी काफ़ी समय देना पड़ता है। इसलिए जो लोग पुस्तकें लिखना चाहते हैं उनके लिए बताएँ कि आप अपने अत्यधिक मेहनत वाले काम और लेखन के बीच समय का प्रबंधन कैसे करते हैं?

मैं कभी जल्दबाज़ी में नहीं रहता - मुझे एक के बाद एक पुस्तकें नहीं लिखनी हैं; मैं आराम से काम कर सकता हूँ। मेरे कई लेखक मित्र हैं जो अपना खर्चा-पानी चलाने के लिए पुस्तकें लिखते हैं। इसलिए उन पर अपनी अगली पुस्तक निकालने का बहुत दबाव रहता है। मैंने कभी वह दबाव महसूस नहीं किया। शुरू में मेडिकल स्कूल में काम करते हुए मुझे लिखने के लिए समय नहीं मिलता था लेकिन यहाँ स्टेनफ़ोर्ड में लोग मेरे लेखन को बहुत प्रोत्साहन देते हैं। उनके लिए यह किसी शोध वैज्ञानिक के अपनी प्रयोगशाला में जाने के बराबर ही है। मैं धीमे-धीमे लिखता हूँ और मैं उतना नियमित भी नहीं हूँ जितना मुझे होना चाहिए लेकिन किसी तरह पन्नों पर पन्ने जुड़ते जाते हैं और अंततः मेरी हस्तलिखित पुस्तक पूरी हो जाती है।

यह सब आपके सतत प्रयास की वजह से है।

मुझसे बात करने के लिए आपने समय निकाला, उसके लिए धन्यवाद। मुझे उम्मीद है कि आप अपनी अगली पुस्तक शीघ्र लिखेंगे।

बहुत-बहुत धन्यवाद।


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अब्राहम वर्गीस

अब्राहम वर्गीस

डॉ. वर्गीस एक प्रसिद्ध चिकित्सक, लेखक और स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल... और पढ़ें

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