तेजिंदर कौर बसरा वैश्विक आध्यात्मिक महोत्सव के दौरान सुलेखा कुंभारे, स्वामी आत्मार्पित रक्षितजी, मार्क मिल्टन और डॉ. दिलशाह सिंह आनंद के साथ ‘समाज में सुख के एक स्रोत के रूप में आजीविका की भूमिका’ विषय पर आयोजित एक पैनल चर्चा के निष्कर्ष यहाँ प्रस्तुत कर रही हैं।
आजीविका वह नींव है जिस पर समाज का निर्माण होता है। यह नवीनता व प्रगति के लिए उत्प्रेरक और सामाजिक एकजुटता का आधार है। आजीविका का सच्चा मूल्य उसके आर्थिक प्रतिफल में नहीं बल्कि हमारे जीवन को समृद्ध बनाने की क्षमता और हमारे समुदायों के उत्थान में निहित है। इस परिप्रेक्ष्य से हम कौन सी व्यावहारिक अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं? यह ज़रूरी है कि समाज के इस वृहत ताने-बाने के साथ हम सभी की आजीविका की परस्पर संबद्धता को हम पहचानें तथा अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को अपने समाज के मूल्यों और आकांक्षाओं के अनुरूप बनाने की कोशिश करें।
पैनल के प्रत्येक सदस्य ने अपने जीवन की कहानी और जीवन तथा आजीविका के प्रति अपने दृष्टिकोण संक्षेप में बताए। उनके व्यक्तिगत अनुभवों और उनकी आजीविका पर उनके आध्यात्मिक अभ्यासों के प्रभाव से उनकी चर्चा में उनके जीवन के उद्देश्य की झलक मिली। उन्होंने यह भी बताया कि जीवन को ज़्यादा सार्थक और संतोषप्रद बनाने के लिए कैसे वे अपने आध्यात्मिक अभ्यासों को अपने व्यावसायिक जीवन के साथ एकीकृत करते हैं। सुझाव के रूप में कुछ उदाहरण भी प्रस्तुत किए गए जिन्हें दर्शक अपने जीवन में लागू कर सकते हैं।
सुश्री सुलेखा के जीवन की कहानी प्रेरणादायक है। उनका जीवन उनके राजनेता पिता के वंचितों की सेवा के प्रति समर्पण से अत्यधिक प्रभावित है। उनके नक्शेकदम पर चलते हुए, उन्होंने नोरिको ओगावा (जापान) के सहयोग से भारत में नागपुर के एक उपनगर, कामठी में अंतर्राष्ट्रीय ड्रैगन पैलेस मंदिर की स्थापना की। नोरिको ओगावा विश्व भर में शांति, मानवता और मैत्री को बढ़ावा देने के लिए प्रसिद्ध है। इस पहल के माध्यम से उन्होंने आर्थिक रूप से वंचित बच्चों और युवाओं के लिए स्कूल और संस्थान बनाए हैं। वे कामठी के पास के ग्रामीण इलाकों में महिला सशक्तिकरण उपक्रमों में भी सक्रिय रूप से लगी हुई हैं।
सुलेखा अपने उग्र स्वभाव से शांत और संयमित होने के अपने व्यक्तिगत बदलाव का श्रेय विपश्यना के अभ्यास को देती हैं जिसे इस मंदिर में भी कराया जाता है। उन्होंने समाज के लिए कुछ करने के महत्व पर ज़ोर दिया और माना कि व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ दूसरों की सेवा करने की प्रतिबद्धता भी होनी चाहिए।
स्वामी आत्मार्पित रक्षितजी एक प्रतिबद्ध सन्यासी हैं जिन्होंने अपने गुरु के मार्गदर्शन में आध्यात्मिक विकास और नि:स्वार्थ सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। मासिक पत्रिका ‘सदगुरु इकोज़’ के प्रधान संपादक के रूप में वे अपने संगठन की गतिविधियों और शिक्षाओं में सक्रिय रूप से योगदान देते हैं। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत का श्रेय अपने गुरु को दिया जिसे उन्होंने युवावस्था के दौरान प्रारंभ किया था।
स्वामीजी ने जीवन में उच्चतर उद्देश्य रखने के महत्व पर ज़ोर दिया और उन्होंने सभी से ईमानदारी और निष्ठा के साथ अपने संपूर्ण सामर्थ्य को पाने का प्रयास करने को कहा। उन्होंने नि:स्वार्थ भाव से कार्य करने के विचार को बढ़ावा दिया। और उन्होंने WORK (आजीविका) शब्द को एक संक्षिप्ति के रूप में प्रस्तुत किया। इसके द्वारा वह यह प्रदर्शित करते हैं कि लोग अपने जीवन के अर्थ को कैसे खोज सकते हैं –
W - (worry-free) चिंता-मुक्त होना,
O – (Organized) संगठित नियोजन,
R – (Relation) रिश्ते बनाकर रखना और कार्य व जीवन के बीच संतुलन बनाए रखना और K - आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध गुरु का अनुसरण करना जो सामाजिक उत्थान हेतु योगदान देने के लिए प्रेरित करते हैं।
मार्क मिल्टन ने दूसरों के साथ संबंधों में सक्रिय रूप से सुनने पर ज़ोर दिया और उन्होंने हमें याद दिलाया कि यह केवल बौद्धिक नहीं हो सकता बल्कि इसमें करुणा और समानुभूति भी होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि बातचीत के दौरान हमारा मन आमतौर पर यह सोचता है कि कैसे जवाब दिया जाए या कोई राय कैसे दी जाए? इसलिए हम वास्तव में दूसरों की बात नहीं सुनते। हमें बातचीत के दौरान बने रहने के प्रति जागरूक रहने की आवश्यकता है जिसे उपस्थिति कहा जाता है। उनके अनुसार इसके लिए ध्यान सबसे अच्छा तरीका है जो उनके लिए विपश्यना है। उन्होंने कहा कि वैश्विक तापक्रम वृद्धि, युद्ध आदि समस्याएँ हमारे रिश्तों को प्रतिबिंबित कर रही हैं और जब हम अपने दिलों में प्रेम विकसित करेंगे तब इस प्रेम को दुनिया में भी प्रकट कर पाएँगे। उन्होंने इसे संबंधपरक चेतना कहा।
दिलशाहजी ने अपना जीवन बहुत ही साधारण परिस्थितियों में शुरू किया और वे अपनी पत्नी के भावनात्मक सहयोग की बदौलत ही उसका सामना कर पाए। अब उन्होंने MCI ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ का गठन किया है जिनके कार्यालय भारत और विदेशों में लगभग सभी बंदरगाहों पर स्थित हैं। उन्हें वंचित बच्चों के लिए स्कूल चलाने से बड़ी संतुष्टि मिलती है।
उनके कुछ सर्वोत्तम सुझाव प्रस्तुत हैं -
हर काम की योजना बनाएँ और जो योजना आप बनाते हैं उसे अमल में लाएँ।
सब कुछ एक डायरी में दर्ज करें।
गलतियाँ स्वीकार करें और उन्हें सुधारें।
अपने परिवार के साथ रात्रि भोजन करें और उस दौरान मोबाइल फ़ोन साथ न रखें।
लड़कियाँ एक खुशहाल परिवार बनाती हैं।
कोई शौक अवश्य रखें, जैसे संगीत।
सेवाभाव और दूसरों की सहायता कर अहंकार को बढ़ने से रोकें।
ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहें।